Priyanka06

Add To collaction

लेखनी कहानी -30-Apr-2022 कलयुग संभल जा जरा

रचीयता-प्रियंका भूतड़ा

शीर्षक-कलयुग संभल जा

हत्या चोरी और डकैती
जिनका अब है बोलबाला

हो गया है कलयुग का प्रहार
इंसान का भला कहां होने वाला

सतयुग जब आया था
था जब इंसान का नाता

अब कलयुग में
दूर-दूर तक नहीं इंसान का नाता

बेच चुका है अपना ईमान
करता है दो नंबर का काम

कलयुग के हालात ने
झकझोर के रख दिया मुझको अब

हुआ करते थे कुछ महात्मा जैसे
अब कहां मिलेगी हमे  अंतरात्मा ऐसी

पहले बढ़ती थी महानो  की विभूतियां
चारों तरफ होती थी उनकी परछाइयां

चोर डकैत हत्यारों जैसी पद्धतिया
बन रही है आज नए जमाने की हस्तियां

हे कलयुग बहुत हो गया तेरा
अब तू संभल जा
भर गया तेरा पाप का घड़ा

आता है सबका वक्त
जैसे आया था
रावण ,कंस ,हिरण्यकश्यप , का
हो गया उनका अंत

हे कलयुग अब तू भी संभल जा
जब आएगा तेरा अंत
जब हो जाएगा तेरा खात्मा
फिर निकलेगा तेरा जनाजा
खाक बनकर रह जाएगा तू

सप्ताह की 22 वी कविता



   9
2 Comments

Gunjan Kamal

01-May-2022 01:34 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 🙏🏻

Reply

Zainab Irfan

30-Apr-2022 05:31 PM

👏👌🙏🏻

Reply